जोधपुर में हैं रावण का मंदिर...जहॉ होती है प्रतिदिन रावण की पूजा !!
जोधपुर में हैं रावण का मंदिर...जहॉ होती है प्रतिदिन रावण की पूजा !!
देश भर में जहां आज रावण दहन पर खुशी मनाई जाएगी, वहीं जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं। ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते है और इन्होंने जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड़ पर रावण और कुलदेवी खरानना का मंदिर भी बना रखा है, जहां उसकी पूजा की जाती है।
मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि जोधपुर के मंडोर में रावण का सुसराल हैं। मंदोदरी के साथ रावण का विवाह मंडोर में ही हुआ था। गोदा गौत्र के लोग रावण की बारात में आए और यहीं पर बस गए। जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर बना हुआ हैं। जहां हर रोज रावण और रावण की कुलदेवी खरानना देवी जो गदर्भ रुप में है उसकी पूजा की जाती है.।
श्रीमाली ब्राह्मण समाज के गोधा गौत्र के लोगों ने यह मंदिर बनवाया है। इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित है। दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है। पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे।
कुछ समाज के विद्वान पंडित श्राद पक्ष में दशमी के दिन अपने सैकड़ों साल पुराने बुजुर्ग वंशज रावण को श्रद्धा से याद करते है. इस दौरान समाज के लोग उनकी आत्मा की शांति के लिये सरोवर पर तर्पण कर पिण्डदान की रस्म अदा करते है. ये वंशज विभिन्न मन्त्र उच्चरणों से तर्पण करते हैं.। हर साल रावण दहन के बाद गोधा परिवार के लोग लोकाचार स्नान करते हैं.।
पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया। दशहरा पर रावण दहन की दिन यह लोग यहां शोक रखते हैं। शोक में डुबे ये लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। इन सब के द्वारा शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद ही भोजन आदि करते हैं।
आपको बता दें कि ये पहला रावण का मंदिर है जहां रावण के परिजनों व रावण की पूजा अर्चना की जाती है और लंकाधिपति को अपना वंशज मानते हुए पण्डितों को भोज कराया जाता है. अपने आप को रावण का परिजन बतानेवाले ये लोग खुशी महसूस करते हैं कि हम लंकाधिपति रावण के वंशज है.। रावण को उसके कर्मों और ज्ञान से स्वर्ग मिला होगा लेकिन उनके वंशज कलयुग में भी सतयुगी रावण की आत्मा को राहत पहुंचाने का काम करते हुए सही रुप से उनके अंश होने का फर्ज भी अदा कर दिखलाते है.
वे भले ही दशहरे के दिन में बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में हर वर्ष प्रकाण्ड पण्डित रावण का दहन किया जाता है वही जोधपुर में रह रहे रावण के वंशज हर धार्मिक रस्म निभा कर रावण की अच्छाईयों को भी अनदेखा नही होने देते है ।
सादर / साभार
अनीष व्यास
देश भर में जहां आज रावण दहन पर खुशी मनाई जाएगी, वहीं जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं। ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते है और इन्होंने जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड़ पर रावण और कुलदेवी खरानना का मंदिर भी बना रखा है, जहां उसकी पूजा की जाती है।
मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि जोधपुर के मंडोर में रावण का सुसराल हैं। मंदोदरी के साथ रावण का विवाह मंडोर में ही हुआ था। गोदा गौत्र के लोग रावण की बारात में आए और यहीं पर बस गए। जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर बना हुआ हैं। जहां हर रोज रावण और रावण की कुलदेवी खरानना देवी जो गदर्भ रुप में है उसकी पूजा की जाती है.।
श्रीमाली ब्राह्मण समाज के गोधा गौत्र के लोगों ने यह मंदिर बनवाया है। इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित है। दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है। पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे।
कुछ समाज के विद्वान पंडित श्राद पक्ष में दशमी के दिन अपने सैकड़ों साल पुराने बुजुर्ग वंशज रावण को श्रद्धा से याद करते है. इस दौरान समाज के लोग उनकी आत्मा की शांति के लिये सरोवर पर तर्पण कर पिण्डदान की रस्म अदा करते है. ये वंशज विभिन्न मन्त्र उच्चरणों से तर्पण करते हैं.। हर साल रावण दहन के बाद गोधा परिवार के लोग लोकाचार स्नान करते हैं.।
पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया। दशहरा पर रावण दहन की दिन यह लोग यहां शोक रखते हैं। शोक में डुबे ये लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। इन सब के द्वारा शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद ही भोजन आदि करते हैं।
आपको बता दें कि ये पहला रावण का मंदिर है जहां रावण के परिजनों व रावण की पूजा अर्चना की जाती है और लंकाधिपति को अपना वंशज मानते हुए पण्डितों को भोज कराया जाता है. अपने आप को रावण का परिजन बतानेवाले ये लोग खुशी महसूस करते हैं कि हम लंकाधिपति रावण के वंशज है.। रावण को उसके कर्मों और ज्ञान से स्वर्ग मिला होगा लेकिन उनके वंशज कलयुग में भी सतयुगी रावण की आत्मा को राहत पहुंचाने का काम करते हुए सही रुप से उनके अंश होने का फर्ज भी अदा कर दिखलाते है.
वे भले ही दशहरे के दिन में बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में हर वर्ष प्रकाण्ड पण्डित रावण का दहन किया जाता है वही जोधपुर में रह रहे रावण के वंशज हर धार्मिक रस्म निभा कर रावण की अच्छाईयों को भी अनदेखा नही होने देते है ।
सादर / साभार
अनीष व्यास
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