स्मार्ट जीवन का तनाव
पिछले दस साल में हमारी दुनिया काफी बदली है। खासकर संचार की दुनिया। और इससे हमारी जिंदगी भी। यह बदलाव कितना है, इसे देखने का एक तरीका यह समझना है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल का रुझान इस दौरान किस तरह बदला है? अमेरिका के आंकड़े यह बताते हैं कि वहां 2008 में लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल एक दिन में औसतन आधे घंटे से भी कम किया करते थे। दस साल बाद अब वहां लोग हर दिन औसतन 3.3 घंटे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। दिलचस्प बात है कि इस दौरान कंप्यूटर का प्रति-व्यक्ति इस्तेमाल मामूली सा ही कम हुआ है। दो साल पहले वह 2.2 घंटे प्रतिदिन था, जो अब घटकर 2.1 घंटे हो गया है। मोबाइल फोन का इस्तेमाल इतना क्यों बढ़ा है, यह बिल्कुल स्पष्ट है। दस साल पहले वहां ज्यादातर लोगों के पास जो फोन होता था, उससे मुख्य काम बातचीत का ही हो सकता था। एसएमएस, कैलकुलेटर या बेसिक गेम जैसी कुछ सुविधाएं थीं, पर वे ऐसी नहीं थीं कि उनमें ज्यादा समय दिया जा सके। स्मार्टफोन तब अपने बाल्यकाल में था, उसका प्रसार भी बहुत ज्यादा नहीं हुआ था। फिर अचानक बाजार में स्मार्टफोन की बाढ़ आई और सब कुछ बदल गया। पर असल मसला यह बदलाव नहीं, हमारे जीवन पर पड़ने वाला उसका असर है।
वैसे तो यह लंबे समय से कहा जा रहा था कि स्मार्टफोन हमें तरह-तरह के तनाव दे रहा है, लेकिन किसी भी चीज के पुख्ता प्रमाण नहीं थे। लेकिन अब इसका विस्तृत अध्ययन भी सामने आ गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की मेलिसा जी हंट ने स्मार्टफोन के हमारे दिमाग पर पड़ने वाले असर पर गहन शोध किया है। उनका यह अध्ययन जर्नल ऑफ सोशल ऐंड क्लिनिकल साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों में अवसाद, तनाव, डर, अलगाव, अकेलेपन और आत्म-सम्मान का कम होना जैसी प्रवृत्तियों का अध्ययन किया और पाया कि ये सभी सोशल मीडिया के इस्तेमाल से तेजी से बढ़ी हैं। अपने अध्ययन के दूसरे चरण को उन्होंने तीन सोशल मीडिया एप पर केंद्रित किया- फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट। अध्ययन में शामिल सभी 143 लोगों से कहा गया कि वे इन एप का इस्तेमाल रोजाना 10 मिनट से ज्यादा न करें। यानी एक दिन में वे सोशल मीडिया पर आधे घंटे से ज्यादा न रहें। दो सप्ताह बाद जब जांच की गई, तो उनमें अवसाद, तनाव और चिंता जैसी मानसिक समस्याओं में बहुत ज्यादा सुधार दिखा।
इस पूरे शोध से कई नतीजे निकाले जा सकते हैं। एक तो यह कि हमारे शरीर और मन की आधुनिक सोशल मीडिया के इस्तेमाल की जितनी क्षमता है, हम उससे कहीं ज्यादा समय उसे दे रहे हैं। इस शोध ने मनोचिकित्सकों को बहुत सारे तनावों के उपचार का रास्ता भी दिखा दिया है। लेकिन स्मार्टफोन हमारे समाज में तनाव का अकेला कारण नहीं है। तनाव का सबसे बड़ा कारण अभी भी वह जीवन-शैली है, जिसका एक हिस्सा पिछले कुछ वर्ष में स्मार्टफोन बन गया है। हर मामले की हकीकत अलग होती है और बहुत से लोग मानते हैं कि दिन भर की थकान के बाद वे सोशल मीडिया पर जाकर मन को हल्का कर लेते हैं। खुद इस शोध में भी स्वीकार किया गया है कि तनाव की समस्या उन लोगों के साथ ज्यादा है, जिन्हें सोशल मीडिया की लत लग जाती है। यानी असली गुनहगार लत है, स्मार्टफोन या सोशल मीडिया नहीं।
वैसे तो यह लंबे समय से कहा जा रहा था कि स्मार्टफोन हमें तरह-तरह के तनाव दे रहा है, लेकिन किसी भी चीज के पुख्ता प्रमाण नहीं थे। लेकिन अब इसका विस्तृत अध्ययन भी सामने आ गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की मेलिसा जी हंट ने स्मार्टफोन के हमारे दिमाग पर पड़ने वाले असर पर गहन शोध किया है। उनका यह अध्ययन जर्नल ऑफ सोशल ऐंड क्लिनिकल साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों में अवसाद, तनाव, डर, अलगाव, अकेलेपन और आत्म-सम्मान का कम होना जैसी प्रवृत्तियों का अध्ययन किया और पाया कि ये सभी सोशल मीडिया के इस्तेमाल से तेजी से बढ़ी हैं। अपने अध्ययन के दूसरे चरण को उन्होंने तीन सोशल मीडिया एप पर केंद्रित किया- फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट। अध्ययन में शामिल सभी 143 लोगों से कहा गया कि वे इन एप का इस्तेमाल रोजाना 10 मिनट से ज्यादा न करें। यानी एक दिन में वे सोशल मीडिया पर आधे घंटे से ज्यादा न रहें। दो सप्ताह बाद जब जांच की गई, तो उनमें अवसाद, तनाव और चिंता जैसी मानसिक समस्याओं में बहुत ज्यादा सुधार दिखा।
इस पूरे शोध से कई नतीजे निकाले जा सकते हैं। एक तो यह कि हमारे शरीर और मन की आधुनिक सोशल मीडिया के इस्तेमाल की जितनी क्षमता है, हम उससे कहीं ज्यादा समय उसे दे रहे हैं। इस शोध ने मनोचिकित्सकों को बहुत सारे तनावों के उपचार का रास्ता भी दिखा दिया है। लेकिन स्मार्टफोन हमारे समाज में तनाव का अकेला कारण नहीं है। तनाव का सबसे बड़ा कारण अभी भी वह जीवन-शैली है, जिसका एक हिस्सा पिछले कुछ वर्ष में स्मार्टफोन बन गया है। हर मामले की हकीकत अलग होती है और बहुत से लोग मानते हैं कि दिन भर की थकान के बाद वे सोशल मीडिया पर जाकर मन को हल्का कर लेते हैं। खुद इस शोध में भी स्वीकार किया गया है कि तनाव की समस्या उन लोगों के साथ ज्यादा है, जिन्हें सोशल मीडिया की लत लग जाती है। यानी असली गुनहगार लत है, स्मार्टफोन या सोशल मीडिया नहीं।
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