हमारे आकार की कथा

रामायण  का एक प्रसंग बहुत लोकप्रिय है, जिसमें हनुमानजी की परीक्षा लेने आई सुरसा उन्हें निगलने के लिए उनके सामने जितना मुंह खोलती है, हनुमानजी अपना आकार उतना ही बड़ा कर लेते हैं। जैसे-जैसे सुरसा के खुले मुंह का आकार बढ़ता जाता है, पवन-सुत का आकार उससे कहीं ज्यादा बड़ा हो जाता है। जब सुरसा के मुंह का आकार बहुत बड़ा हो जाता है, तो हनुमान अचानक ही सूक्ष्म रूप धारण करके उसके मुंह में घुस जाते हैं और तुरंत ही निकल भी आते हैं। यह प्रसंग इतना लोकप्रिय हुआ कि तमाम समस्याओं के लिए सुरसा के मुंह का मुहावरा ही बन गया। हमारे पौराणिक आख्यानों में विराट रूप धारण करने और सूक्ष्म रूप धारण करने के ऐसे कई प्रसंग हैं। ये सभी चीजें कुछ इसी तरह से पश्चिम की सोच में भी हैं, लेकिन उन्हें जो चीज सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, वह सूक्ष्म रूप धारण करना। गुलिवर की यात्रा कथाओं में वह कहानी सबसे लोकप्रिय है, जिसमें वह इतने बौने लोगों के देश में पहुंच जाता है, जिनका आकार आधा फुट भी नहीं है। लेकिन सूक्ष्म आकार की फंतासी को सबसे ज्यादा अपनाया है आधुनिक विज्ञान कथाओं और उनके अनुसरण से बने कार्टून चलचित्रों ने। इन विज्ञान कथाओं में वैज्ञानिक ऐसी तकनीक विकसित कर लेते हैं, जिनसे इंसान को सूक्ष्म बनाया जा सकता है। एक पात्र ने लेजर गन चलाई और उसके निशाने पर खड़ा दूसरा पात्र तुरंत ही बौना बन गया। विज्ञान कथाएं अक्सर वास्तविक विज्ञान और तकनीक पर दबाव बनाती हैं, इसलिए ऐसी तकनीक की संभावनाएं खोजने की कोशिशें भी हुई हैं। ऐसी कोशिश से पहले हर बार यह पूछा जाता है कि क्या इंसान को सचमुच उसके आकार से छोटा किया जा सकता है?
लेकिन वर्जीनिया टेक के मैक्स माइकल और अने स्टेपल ने इस सवाल को दूसरे सिरे से पकड़ने की कोशिश की। उन्होंने यह जानना चाहा कि अगर इंसान को सचमुच छोटा कर दिया जाए, तो उसका जीवन कैसा होगा? वे दोनों जिस नतीजे पर पहुंचे, वह काफी दिलचस्प है। सबसे पहले तो उन्होंने पाया कि जब पूरा शरीर और उसके अंग छोटे हो जाएंगे, तो हमारा श्वसन तंत्र भी छोटा हो जाएगा। अपने छोटे फेफड़ों में हम बहुत ज्यादा ऑक्सीजन नहीं भर सकेंगे। जितनी ऑक्सीजन हमारे शरीर को चाहिए, उतनी नहीं मिल सकेगी और हम वैसा ही महसूस करेंगे, जैसा कि ऊंचे पहाड़ पर वहां महसूस करते हैं, जहां ऑक्सीजन काफी कम होती है। ऐसा माना जाता है कि आठ हजार मीटर से ज्यादा ऊंचाई से डेथ जोन शुरू हो जाता है, जहां इंसान फेफड़ों में कम ऑक्सीजन पहुंचने की वजह से जान से हाथ भी धो सकता है। इसके अलावा, हमारा शरीर जितनी गरमी पैदा करता है, उतनी ही खर्च भी कर देता है। शरीर छोटा होने से ये दोनों क्षमताएं घटेंगी, पर गरमी पैदा करने की क्षमता, गरमी खर्च करने की क्षमता के मुकाबले कहीं तेजी से घटेगी।
जाहिर है, इन सभी स्थितियों में जीना मुश्किल होगा या यह कहना पड़ेगा कि ये जीना भी कोई जीना है। कहानियां और प्राचीन प्रसंग अपनी जगह हैं, लेकिन सच यही है कि हमारा आकार इस प्रकृति में हमारे शरीर की सभी जरूरतों को पूरे करने के लिहाज से ही बना है। यह हमें उतनी ही सामथ्र्य देता है, जितनी हमें जरूरत है। इसके आकार, इसकी क्षमताओं या इसकी प्रकृति से खिलवाड़ की कोई भी कोशिश महंगी पड़ सकती है। जीवन की कथा का यही सबसे बड़ा सच है।

Comments

Popular posts from this blog

बस इतना ही संग था तुम्हारा हमारा बेटी...!!

जोधपुर की प्रसिद्ध...हल्दी की सब्जी...और हल्दी का अचार...!!

काला चना पकौड़ा