इंटरनेट अभिव्यक्ति की आजादी...स्वागत योग्य
इंटरनेट अभिव्यक्ति की आजादी...स्वागत योग्य
अनीष व्यास
अनीष व्यास
स्वतंत्र पत्रकार
सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट के इस्तेमाल को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार का ही एक रूप करार दिया है। शुक्रवार को यह अहम फैसला देते हुए उसने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस केंद्र शासित प्रदेश में सभी प्रतिबंध आदेशों की एक हफ्ते के अंदर समीक्षा करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता। भविष्य में अगर कहीं धारा 144 लगाई जाती है तो सात दिनों के अंदर उसका रिव्यू जरूर होना चाहिए। लोगों को अधिकार होगा कि वे इसे कोर्ट में चुनौती दें।
फैसला भले ही एक क्षेत्र विशेष के संदर्भ में हुआ हो, लेकिन इसका प्रभाव अखिल भारतीय होगा और लंबे समय तक याद किया जाएगा। खासकर अदालत ने जिस तरह इंटरनेट को अभिव्यक्ति की आजादी का एक अंग ठहराया है, वह कई तरह से स्वागत योग्य है। इसलिए भी कि अब प्रशासन का मनमाने ढंग से हर मौके-बेमौके पर इंटरनेट सेवा को बाधित करने का अधिकार खत्म होगा और इसलिए भी कि इससे मूल अधिकारों को नई तकनीक या नए दौर की जरूरतों से जोड़कर देखने का चलन शुरू होगा। यह संयुक्त राष्ट्र की उस सलाह के भी मुताबिक है, जिसमें कहा गया है कि हर देश से सिफारिश की गई है कि वह इंटरनेट सेवा पाने के नागरिकों के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा दे। जम्मू-कश्मीर में धारा-144 के तहत लगाई गई पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जहां इस केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को राहत देता है, वहीं यह केंद्र सरकार के सामने नई चुनौती पेश करेगा। अदालत का कहना है कि सुरक्षा के नाम पर लोगों को लंबे समय तक उनके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता। केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा की थी और विरोध की आशंकाओं को देखते हुए उसी समय से वहां भारी पाबंदियां लगा दी थीं। शुरू में तो टेलीफोन सेवाओं पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी। बाद में कई पाबंदियां तो हटा दी गईं, लेकिन इंटरनेट सेवाओं पर लगी पाबंदी पिछले 154 दिन से लगातार जारी रही है।
वहां लोगों को कैसी और कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, इसकी खबरें हम लगातार पढ़ रहे हैं। इंटरनेट सेवाओं के बिना आज के जीवन की कल्पना मुमकिन नहीं है। इसे बाधित करने का अर्थ है, लोगों को फिर से उसी पुराने दौर में पहुंचा देना, जो आज की जरूरतों के लिहाज से निरर्थक हो चुका है। आज बहुत सारे कारोबार, बहुत सारी सेवाएं, बहुत सारे लेन-देन और बहुत सारी दिनचर्या इंटरनेट पर आधारित हो चुकी है। इंटरनेट बंद होने का अर्थ है, इन सबका बंद हो जाना। इंटरनेट सेवाओं के बाधित होने का क्या अर्थ होता है, इसका स्वाद पिछले दिनों बाकी भारत के कई हिस्सों को भी चखने को मिला, जब नागरिकता संशोधन कानून के बाद हुए आंदोलन के दौरान या उसकी आशंका में अनेक जगहों पर इंटरनेट सेवा को बाधित कर दिया गया था। कुछ लोगों ने यह भी आकलन करने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट के बाधित होने से राज्य के कारोबारियों को कितने का नुकसान हुआ? अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह के भीतर समीक्षा करने का निर्देश दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके बाद सब कुछ फिर पटरी पर आ जाएगा।
बेशक, यह आशंका रहेगी कि इंटरनेट सेवा शुरू हुई, तो इसका फायदा उठाने की कोशिश असामाजिक तत्व, अलगाववादी और आतंकवादी भी करेंगे। यह आशंका हमेशा ही रहती है, कुछ हद तक सभी जगह रहती है। सरकार की चुनौती इन्हीं आशंकाओं के बीच लोगों को सुरक्षा और साथ ही इंटरनेट सेवा का अधिकार देने की है। इंटरनेट सेवा को बाधित करके सरकारें दरअसल अपनी इसी चुनौती को कम करने की कोशिश करती हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद प्रशासन के कामकाज की इसी शैली पर लगाम लगेगी।
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